हिंदी इतनी समृद्ध भाषा है की इसमें हमारे रिश्ते अच्छी तरह से बताये गए हैं जबकि अंग्रेजी में चाचा ताऊ मामा फूफा सबको अंकल बोलतें हैं और बड़ी बहिन ,दीदी , भाभी ननद जैसे सम्बन्ध को तो बताया ही नहीं जा सकता । ऐसी भाषा जो हमारे संस्कार और सम्बन्ध को भी नहीं बता सकते उसे हम क्यूँ अपनाते हैं । अंग्रेजी भाषा हमारे संबंधों को सूक्ष्म स्तर पर परिभाषित करने की औकात नहीं रखती है । जिस भाषा में मूल शब्द सिर्फ १२००० हैं जो की गुजराती भाषा के मूल शब्दों (४००००) से भी कम है उसको हमारे पढने का माध्यम कैसे बना सकते हैं । हमे अंग्रेजी और अंग्रेजों के तलवे चाटने बंद करने होंगे । सच कहों तोह मेरा मन आईटी से उब गया हैं । पता नहीं क्यूँ लेकिन आत्मबोध की स्थिति में हूँ .....
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