अमेरिका प्रवास के दौरान लिखी एक रचना
मातृभूमि
ए मातृभूमि मेरी रह ताकना
सूरज पर स्वर होक आऊँगा
नए बयार नया सवेरा लाऊँगा
तेरी उर्वर शक्ति को शत शत नमन
माँ गंगा है तुझे सींचती
हरित क्रांति मैं लूंगा
ए मातृभूमि मेरी रह तकना
सूरज पर सवार होके आऊँगा
मुझे आँचल में समेट लेना
स्नेह का आलिंगन मुझे देना
... तेरा आशीष पाकर मैं
विषम परिस्थितियों से लड़ जाऊँगा
ए मातृभूमि .............
रतीश
मातृभूमि
ए मातृभूमि मेरी रह ताकना
सूरज पर स्वर होक आऊँगा
नए बयार नया सवेरा लाऊँगा
तेरी उर्वर शक्ति को शत शत नमन
माँ गंगा है तुझे सींचती
हरित क्रांति मैं लूंगा
ए मातृभूमि मेरी रह तकना
सूरज पर सवार होके आऊँगा
मुझे आँचल में समेट लेना
स्नेह का आलिंगन मुझे देना
... तेरा आशीष पाकर मैं
विषम परिस्थितियों से लड़ जाऊँगा
ए मातृभूमि .............
रतीश
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