Monday, April 29, 2013

मातृभूमि

अमेरिका प्रवास के दौरान लिखी एक रचना

मातृभूमि

ए  मातृभूमि  मेरी  रह  ताकना
सूरज   पर  स्वर  होक  आऊँगा
नए  बयार  नया  सवेरा  लाऊँगा
तेरी  उर्वर  शक्ति  को  शत शत  नमन
माँ  गंगा  है  तुझे  सींचती
हरित  क्रांति  मैं  लूंगा
ए  मातृभूमि  मेरी  रह  तकना
सूरज  पर   सवार   होके  आऊँगा
मुझे  आँचल  में  समेट  लेना
स्नेह  का  आलिंगन  मुझे  देना
... तेरा  आशीष  पाकर  मैं
विषम   परिस्थितियों  से  लड़  जाऊँगा
ए  मातृभूमि  .............

रतीश 

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