Friday, February 5, 2016

बिटिया

चंचल को दो महीने हो गए बिछावन पकडे हुए। इलाज़ के नाम पे ढेला न हुआ था । दो साल पहले जब कॉलेज से अव्वल नम्बरों से पास हुई थी तो बाउजी ने चुपके से चुपके से उसे नया स्मार्ट फ़ोन लाके  दिया था जिसकी चार्जिंग हमेशा पड़ोस के घर में होती थी इस डर से की अगर उसकी  सौतेली माँ ने देख लिया तोह ।  एक दिन उसी  फ़ोन पे  इंटरव्यू कॉल भी आया था । महिंद्रा के शोरूम  में सेल्स एग्जीक्यूटिव की नौकरी का ।  पंद्रह हजार तनख्वाह और एक नया दुपहिया  ऑफिस आने जाने के लिए । चंचल की तपस्या काम आ गयी । ऑफर लेटर ले के घर में पहुंची तो खुश होने के बजाय घबरा गयी । सौतेली माँ कैसी  प्रतिक्रिया देगी पता नहीं  ! फ़ोन लगाया उसने बुआ को । बुआ ने बोला पहली तनख्वाह मिलते हे अलग कमरा ले ले और किसी की परवाह न करे । पापा घर पे नहीं थे ,मिकी खेलने गया था । ललिता चंचल की चाल भांप गयी ,उसे लग गया की चंचल कुछ अच्छा खबर लायी है । दिमाग की बत्ती जल गयी की आगे क्या करना है ? चंचल को ललिता  का व्यवहार बदला बदला सा लगा ।  १ महीने में चंचल उसके झांसे में आ गयी । रोज सुभह नास्ता बनाके ऑफिस जाती और शाम को आके खाने में हाँथ बटाती । पहली तनख्वाह से  भोले बाबा को लड्डू चढ़ा के सारा पैसा महतारी को दे दी , आखिर यही तोह उसके पापा भी करते थे । जब तक तबियत खराब न हुई तब तक तोह सब ठीक था । पापा की नयी बाइक आ गयी , मिकिआ का म्यूजिक सिस्टम ,मैया का नया सोने का हार । जिस दिन तबियत बिगड़ी बेचारी चंचल असहाय हो गयी । दो दिन की छुट्टी ली थी और आज एक महीना हो गया ज्वर गया नहीं । आज तक डॉक्टर को नहीं दिखाया । कोई कहे तोह ललिता देवी कह देती ,"अरे दवाई घोंटती ही नहीं है ज्वर कहाँ से उतरेगा , कहाँ कहाँ से   इलाज नहीं कराया लेकिन इसको न जाने कौन सा मरज  पकड़ लिया है "। सबको पता था अब चंचल नहीं बचेगी । नौकरी भी कबतक रहती, प्राइवेट  थी  ।  चंचल बेसुध बेचारी ,न जाने किसका राह जोह रही थी । बुआ को पता लगा तो आई लेकिन देर हो चूका था । डॉक्टर ने भी बचने की कोई उम्मीद  छोर दी और बोले बहुत देर कर दी । तीसरे महीने का पहला दिन , तेज धुप , धुल  और उतना  तेज ज्वर । चंचल के  मुहं से बुआ बुआ निकला और  इहलीला ख़त्म हो गयी ।  धरम बाबू की बिटिया विदा ने सदा के लिए विदा ले लिया  ।  @रतीश 

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