रामावतार को बिटिया की शादी करनी थी । सोलवां चढ़ गया था नीलुआ को ,अचरज थी एकदम । बेनियाचक से रामेशवर माट्साब के घर का रिश्ता था । ४ बीघा जमीन ,ट्रैक्टर ,पेंसन ,पक्का मकान क्या नहीं था , बीए पास कम्पटीशन की तैयारी कर रहा था सुनील । ५ लाख नगद का डिमांड हुआ था और बाकी सब तो थैये था लिस्ट में । अब तो खैनी की फसल उम्मीद टिकी थी कि बेटी विदा हो जाये तो देवघर जल चढ़ाएंगे बाबा को । फसल अच्छी हुई थी । खेत लहलहा रहे थे ,खैनी के पत्ते बेतरबिब बड़े हो रहे थे और उतना ही सीना चौड़ा हो रहा था रामावतार का । बस कुछ ही दिनों में बिटिया के हाथ पीले होने वाले थे । टेंट वाला ,हलवाई ,गाडी वाला , जनमासा सब का इन्तेजाम हो गया था । डेढ़ महीने बाद तिलक और उसके के एक हफ्ता बाद शा दी थी ।फसल भी कटने वाली थी । कलकत्ता वाली पार्टी ने पांच हजार रुपये बयाना भी दे दिया था । पचीस हजार रुपये कट्ठा के हिसाब से तय हुआ था दाम। पूरे ३० कट्ठा में थी फसल । मार्च का आखिरी हफ्ता था । बेमौसम बादल दिख रहे थे । दोपहर में थोड़ी बूंदा बांदी हो गयी । शक्ति का संतुलन था ये । रामवतार जैसे इंसान हो सतर्क करने के लिए काफी था। दो हफ्ता तक कोई बादल नहीं दिखा । रामवतार शहर गया था शादी के कपड़े ,सामान खरीदने । घर पर हिदायत दे दी थे खेत पर हमेशा पहरा रहे । अप्रैल महीना शुरू ही हुआ था । गर्मी महीना पाँव पसार रहा था । पर जिस बदरी का अंदेशा नहीं के बराबर था वो अचानक धूल भरी आंधी के साथ साक्षात् यम बनके पहुंचा । रामवतार आधी खरीदारी छोड़ के मोटरसाइकिल निकाल के घर की तरफ भागा । धूल भरी आंधी उसका रास्ता रोक रहे थे । ईश्वर ने बेटी जो दिया था परीक्षा तो लेगा ही । जैसे जैसे बादल घने हो रहे थे\वैसे रामवतार की मोटरसाइकिल की रफ़्तार बढ़ रही थी और उसकी धड़कन की भी । न जाने क्या लिखा है नीलुआ के किस्मत में ? हे इंद्रदेव आज न बरसिउ ।
बरखा शुरू हो गयी और ओले भी । रे हे रे पन्नी निकाल , जल्दी ला । फैलो एकरा । रे हे रे सब कोना से पकड़ । एगो और पन्नी निकाल । बड़का वाला । तीस कट्टा में न है रे । रे हे रे जल्दी कर ।
किसी तरह खेत को ढक पाये । तब तक ओलों ने अपना काम कर दिया था । ओलों ने पत्तों में नहीं बल्कि रामवतार के हृदय में छेद कर दिया था । आधी कीमत भी नहीं रह गयी फसल की । बड़ी मुश्किल से तो पार्टी फसल लेने को भी तैयार हुई । नीलुआ विदा तो हो गयी लेकिन बाप बेचारा साहूकार के चक्रवृद्धि ब्याज में धंस गया । अब तो मिनिया भी बारह की हो गयी है , सरवन का पढाई ऊपर से चक्रवृद्धि ब्याज ।
बरखा शुरू हो गयी और ओले भी । रे हे रे पन्नी निकाल , जल्दी ला । फैलो एकरा । रे हे रे सब कोना से पकड़ । एगो और पन्नी निकाल । बड़का वाला । तीस कट्टा में न है रे । रे हे रे जल्दी कर ।
किसी तरह खेत को ढक पाये । तब तक ओलों ने अपना काम कर दिया था । ओलों ने पत्तों में नहीं बल्कि रामवतार के हृदय में छेद कर दिया था । आधी कीमत भी नहीं रह गयी फसल की । बड़ी मुश्किल से तो पार्टी फसल लेने को भी तैयार हुई । नीलुआ विदा तो हो गयी लेकिन बाप बेचारा साहूकार के चक्रवृद्धि ब्याज में धंस गया । अब तो मिनिया भी बारह की हो गयी है , सरवन का पढाई ऊपर से चक्रवृद्धि ब्याज ।
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