चलिए मान लेते हैं आपकी बात काटजू साब की आप निहायत साइंटिफिक बात करते हैं और बहुत ही तार्किक इंसान हैं. आप भूतपुर्व जज भी रह चुके हैं । आप कहते हैं हिन्दू धर्म में बहुत बुराइयां हैं , जात पांत का भेदभाव है , कुरीतियां हैं , अन्धविश्वास है , इत्यादि इत्यादि । बुजुर्ग हैं आप लेकिन ऐसे तो बिलकुल नहीं जिनको फॉलो किया जाए । जज रहे हैं तो तर्क प्रधान होंगे ही । अमेरिका वाले , जापान वाले ,चीन वाले , यूरोपियन्स सब गाय मार कर खाते हैं , सब बेवकूफ तो नहीं और हम नहीं खाते हैं इसलिए श्रेष्ठ तो नहीं ! बिलकुल सही तर्क है । लेकिन सबसे पहला तर्क की किसी को मार के खाना ठीक है चाहे वो एक निरीह प्राणी ही क्यों न हो ? दूसरा जिसको मार दिया , और अब जो मार हुआ है उसे पका के खा जाना क्या सइंटिफिकल्ली ठीक है ? अगर दुनिया के ६ अरब लोग सब गाय मार के खाने लगे तोह इतने गाय कहाँ से पैदा करोगे काटजू साब की सबकी इक्छा पूर्ती करोगे । एक गाय मारने के बाद उसके मांस को खाने लायक बनाने के लिए १००० लीटर से ऊपर पानी लगता है और गाय का बेकार हिस्सा जो की खाने लायक नहीं है फ़ेंक दिया जाता है । इतना पानी क्या आपकी रचित कोई आइलैंड से लाएंगे और कचरा किसी तीसरी दुनिया के देशों में फेंकेंगे ? हज़ारों गाय के काटने से जितना प्रदुषण होता है उसको आपकी शरीर से निकली विशेष गैस तो शुद्ध नहीं करेगी न । आप खाएं बेशक खाएं , हिन्दू मुर्ख है अगर नहीं खाता है तो , मुर्ख ही अच्छा है । आपकी तरह पश्चिम परस्त नहीं बनना है । हिन्दू न खा के ज़िंदा भी है और दुनिया की सबसे उम्दा कौम भी है । शायद हम शान्ति परस्त और शान्ति पसंद कौम हैं तो इसका सबसे बड़ा कारण है हम जीवों के प्रति दयालु हैं! हम जीवों को जीने का उतना ही अधिकार देना पसंद करते हैं जितना हमे है । मुझे ताजुब्ब होता है की आप सुप्रीम कोर्ट के जज थे ! हो सकता है मैं भ्रम में हूँ की सुप्रीम कोर्ट के जज के पास अच्छी तर्क शक्ति और स्थिर दिमाग होता है । भारत के संविधान में भी आपका विश्वास था /है या नहीं । काटजू साब अगर आपने हिन्दू धर्म को ठीक से समझा होता तो शायद ऐसी बात नहीं करते ।
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