Friday, June 7, 2013

कर्मयोग



अर्जुन बोले - हे जनार्दन! यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्‍ठ मान्य है तो फिर हे केशव! मुझ भयंकर कर्म में क्यों लगाते हैं?॥१॥

आप मिले हुए-से वचनों से मेरी बुद्धि को मानो मोहित कर रहे हैं। इसलिए उस एक बात को निश्‍चित करके कहिये जिससे मैं कल्याण को प्राप्‍त हो जाऊँ॥२॥

श्रीभगवान बोले - हे निष्पाप! इस लोक में दो प्रकार की निष्‍ठा मेरे द्वारा पहले कही गयी है। उनमें से सांख्ययोगियों की निष्‍ठा तो ज्ञानयोग से और योगियों की निष्‍ठा कर्मयोग से होती है॥३॥

मनुष्य न तो कर्मो का आरम्भ किये बिना निष्कर्मता को यानी योगनिष्‍ठा को प्राप्‍त होता है और न कर्मों के केवल त्यागमात्र से सिद्धि यानी सांख्यनिष्‍ठा को ही प्राप्‍त होता है॥४॥

निःसन्देह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता; क्योंकि सारा मनुष्यसमुदाय प्रकृतिजनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है॥५॥

जो मूढ़बुद्धि मनुष्य समस्त इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करता रहता हैं, वह मिथ्याचारी अर्थात् दम्भी कहा जाता है॥६॥

किन्तु हे अर्जुन! जो पुरुष मन से इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त हुआ समस्त इन्द्रियों द्वारा कर्मयोग का आचारण करता है, वही श्रेष्‍ठ है॥७॥

तू शास्‍त्रविहित कर्तव्यकर्म कर; क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्‍ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर-निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा॥८॥

यज्ञ के निमित्त किये जानेवाले कर्मों से अतिरिक्त दूसरे कर्मों में लगा हुआ ही यह मनुष्य समुदाय कर्मों स बँधता है। इसलिए हे अर्जुन! तू आसक्ति से रहित होकर उस यज्ञ के निमित्त ही भलीभाँति कर्तव्यकर्म कर॥९॥

प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ सहित प्रजाओं को रचकर उसने कहा कि तुम लोग इस यज्ञ के द्वारा वृद्धि को प्राप्‍त होओ और यह यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भोग प्रदान करनेवाला हो॥१०॥

तुम लोग इस यज्ञ के द्वारा देवताओं को उन्नत करो और वे देवता तुम लोगों को उन्नत करें। इस प्रकार निःस्वार्थ भाव से एक-दूसरे को उन्नत करते हुए तुम लोग परम कल्याण को प्राप्‍त हो जाओगे॥११॥

यज्ञ के द्वारा बढाये हुए देवता तुम लोगों को बिना माँगे ही इच्छित भोग निश्‍चत ही देते रहेंगे। इस प्रकार उन देवताओं के द्वारा दिये हुए भोगों को जो पुरुष उनको बिना दिये स्वयं भोगता हो, वह चोर है॥१२॥

यज्ञ से बचे हुए अन्न को खानेवाले श्रेष्‍ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते है और जो पापी लोग अपना शरीर-पोषण करने के लिए ही अन्न पकाते हैं, वे तो पाप को ही खाते हैं॥१३॥

सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते है, अन्न की उत्पत्ति वृष्‍टि से होती है, वृष्‍टि यज्ञ से होती है औऱ यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होनेवाला है। कर्म समुदाय को तू वेद से उत्पन्न और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जान। इससे सिद्ध होता है कि सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्‍ठित है॥१४-१५॥

हे पार्थ! जो पुरुष इस लोक में इस प्रकार परम्परा से प्रचलित सृष्‍टिचक्र के अनुकूल नहीं बरतता अर्थात अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता, वह इन्द्रियों के द्वारा भोगों में रमण करनेवाला पापायु पुरुष व्यर्थ ही जीता है॥१६॥

परन्तु जो मनुष्‍य आत्मा में ही रमण करनेवाला और आत्मा में ही तृप्‍त तथा आत्मा में ही सन्तुष्‍ट हो, उसके लिये कोई कर्तव्य नहीं है॥१७॥

उस महापुरुष का इस विश्‍व में न तो कर्म करने से कोई प्रयोजन रहता है और न कर्मोंकि न करने से ही कोई प्रयोजन रहता है। तथा सम्पूर्ण प्राणियों में भी इसका किंचिन्‌मात्र भी स्वार्थ का सम्बन्ध नहीं रहता॥१८॥

इसलिए तू निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्यकर्म को भलीभाँति करता रह। क्योंकि आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्‍त हो जाता है॥१९॥

जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्तिरहित कर्मद्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्‍त हुए थे। इसलिए तथा लोक संग्रह को देखते हुए भी तू कर्म करने के ही योग्य है अर्थात तुझे कर्म करना ही उचित है॥२०॥

श्रेष्‍ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते है। वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है॥२१॥

हे अर्जुन! मुझे इन तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई भी प्राप्‍त करने योग्य वस्तु अप्राप्‍त है, तो भी मैं कर्म में ही बरतता हूँ॥२२॥

क्योंकि हे पार्थ! यदि कदाचित मैं सावधान होकर कर्मों में न बरतूँ तो बड़ी हानि हो जाए; क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते है॥२३॥

इसलिए यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सब मनुष्य नष्‍ट-भ्रष्‍ट हो जाए और मैं संकरता का करनेवाला होऊँ तथा इस समस्त प्रजा को नष्‍ट करनेवाला बनूँ॥२४॥

हे भारत! कर्म में आसक्त हुए अज्ञानीजन जिस प्रकार कर्म करते हैं, आसक्तिरहित विद्वान भी लोक संग्रह करना चाहता हुआ उसी प्रकार कर्म करे॥२५॥

परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्‍त्रविहित कर्मों में आसक्तवाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात् कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे। किन्तु शास्‍त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवावे॥२६॥

वास्तव में सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते है तो भी जिसका अन्तःकरण अहंकार से मोहित हो रहा है, ऐसा अज्ञानी 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मानता है॥२७॥

परन्तु हे महाबाहो! गुणविभाग और कर्मविभाग के तत्त्व को जाननेवाला ज्ञानयोगी सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरत रहे है, ऐसा समझकर उनमें आसक्त नही होता॥२८॥

प्रकृति के गुणों से अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणों में और कर्मों में आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझनेवाले मन्दबुद्धि अज्ञानियों को पूर्णतया जाननेवाला ज्ञानी विचलित न करे॥२९॥

मुझ अन्तर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मुझे में अर्पण करके आशारहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर युद्ध कर॥३०॥

जो कोई मनुष्य दोषदृष्‍टि से रहित और श्रद्धायुक्त होकर मेरे इस मत का सदा अनुकरण करते हैं, वे भी सम्पूर्ण कर्मों से छूट जाते हैं॥३१॥

परन्तु जो मनुष्य मुझ में दोषारोपण करते हूए मेरे इस मत के अनुसार नहीं चलते हैं, उन मूर्खों को तू सम्पूर्ण ज्ञानों मे मोहित और नष्‍ट हुए ही समझ॥३२॥

सभी प्राणी प्रकृति को प्राप्‍त होते है अर्थात अपने स्वभाव के परवश हुए कर्म करते हैं। ज्ञानवान भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्‍ठा करता है। फिर इसमें किसी का हठ क्या करेगा?॥३३॥

इन्द्रिय-इन्द्रिय के अर्थ में अर्थात प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में राग और द्वेष छिपे हुए स्थित हैं। मनुष्य को उन दोनों के वश में नहीं होना चाहिये, क्योंकि वे दोनों ही इसके कल्याण मार्ग में विध्न करनेवाले महान शत्रु हैं॥३४॥

अच्छी प्रकार आचरण में लाये हुए दूसरे के धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म अति उत्तम है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देनेवाला है॥३५॥

अर्जुन बोले - हे कृष्ण! तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात लगाये हुए की भाँति किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है?॥३६॥

श्रीभगवान बोले - रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है, यह बहुत खानेवाला अर्थात् भोगों से कभी न अघानेवाला और बड़ा पापी है, इसको ही तू इस विषय में वैरी जान॥३७॥

जिस प्रकार धूएँ से अग्नि और मैल से दर्पण ढका जाता है तथा जिस प्रकार जेर से गर्भ ढका रहता है, वैसे ही उस काम के द्वारा यह ज्ञान ढका रहता है॥३८॥

और हे अर्जुन! इस अग्नि के समान कभी न पूर्ण होनेवाले कामरूप ज्ञानियों के नित्य वैरी के द्वारा मनुष्य का ज्ञान ढका हुआ है॥३९॥

इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि - ये सब इसके वासस्थान कहे जाते हैं। यह काम इन मन, बुद्धि और इन्द्रियों के द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके जीवात्मा को मोहित करता है॥४०॥

इसलिए हे अर्जुन! तू पहले इन्द्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान पापी काम को अवश्य ही बलपूर्वक माल डाल॥४१॥

इन्द्रियों को स्थूल शरीर से पर यानी श्रेष्‍ठ, बलवान और सूक्ष्म करते हैं; इन इन्द्रियों से पर मन है, मन से भर पर बुद्धि और जो बुद्धि से भी अत्यन्त पर हैं वह आत्मा है॥४२॥

इस प्रकार बुद्धि से पर अर्थात सूक्ष्म, बलवान और अत्यन्त श्रेष्‍ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके हे महाबाहो! तू इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डाल॥४३॥

ॐ तत्सदिति श्रीमद्‍भगवद्‍गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्यायः॥३॥
-----हर हर महादेव..........जय अम्बे

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति

दशमलव, और वैदिक गणित से है पश्चिम भी हतप्रभ ------मैंने यू पी बोर्ड के दसवीं कक्षा में वैदिक गणित पढ़ा था । मुझे अफ़सोस हुआ था आखिर इतने दिनों तक मैंने ये क्यूँ नहीं सीखा ?

क्या यह संभव है कि जिस भारत ने हजारों साल पहले दुनिया को शून्य और दशमलव प्रणाली दी है, उसके पास अपना कोई अलग गणित-ज्ञान न रहा हो? जिन वेदों की गागर में अपने समय के समूचे ज्ञान-विज्ञान का महासागर भरा हो, उस में गणित-ज्ञान नाम की सरिता के लिए स्थान न बचा हो?

जर्मनी में सबसे कम समय का एक नियमित टेलीविजन कार्यक्रम है 'विसन फोर अख्त।' हिंदी में अर्थ हुआ 'आठ के पहले ज्ञान की बातें'। देश के सबसे बड़े रेडियो और टेलीविजन नेटवर्क एआरडी के इस कार्यक्रम में, हर शाम आठ बजे होने वाले मुख्य समाचारों से ठीक पहले, भारतीय मूल के विज्ञान पत्रकार रंगा योगेश्वर केवल दो मिनटों में ज्ञान-विज्ञान से संबंधित किसी दिलचस्प प्रश्न का सहज-सरल उत्तर देते हैं। ऐसे ही एक कार्यक्रम में रंगा योगेश्वर बता रहे थे कि भारत की क्या अपनी कोई अलग गणित है? वहाँ के लोग क्या किसी दूसरे ढंग से हिसाब लगाते हैं?

देखिए उदाहरण :
multiply 23 by 12:

2 3
| × |
1 2
2×1 2×2+3×1 3×2

2_____7_____6

So 23 × 12 = 276

भारत में कम ही लोग जानते हैं कि वैदिक गणित नाम का भी कोई गणित है। जो जानते भी हैं, वे इसे विवादास्पद मानते हैं कि वेदों में किसी अलग गणना प्रणाली का उल्लेख है। पर विदेशों में बहुत-से लोग मानने लगे हैं कि भारत की प्राचीन वैदिक विधि से गणित के हिसाब लगाने में न केवल मजा आता है, उससे आत्मविश्वास मिलता है और स्मरणशक्ति भी बढ़ती है। मन ही मन हिसाब लगाने की यह विधि भारत के स्कूलों में शायद ही पढ़ाई जाती है। भारत के शिक्षाशास्त्रियों का अब भी यही विश्वास है कि असली ज्ञान-विज्ञान वही है, जो इंग्लैंड-अमेरिका से आता है।


ND
घर का जोगी जोगड़ा
घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध। जबकि सच्चाई यह है कि इंग्लैंड-अमेरिका जैसे आन गाँव वाले भी योगविद्या की तरह ही आज भारतीय वैदिक गणित पर चकित हो रहे हैं और उसे सीख रहे हैं। उसे सिखाने वाली पुस्तकों और स्कूलों की भरमार हो गई है। बिना कागज-पेंसिल या कैल्क्युलेटर के मन ही मन हिसाब लगाने का उससे सरल और तेज तरीका शायद ही कोई है। रंगा योगेश्वर ने जर्मन टेलीविजन दर्शकों को एक उदाहरण से इसे समझायाः

'मान लें कि हमें 889 में 998 का गुणा करना है। प्रचलित तरीके से यह इतना आसान नहीं है। भारतीय वैदिक तरीके से उसे ऐसे करेंगेः दोनों का सब से नजदीकी पूर्णांक एक हजार है। उन्हें एक हजार में से घटाने पर मिले 2 और 111 । इन दोनों का गुणा करने पर मिलेगा 222 । अपने मन में इसे दाहिनी ओर लिखें। अब 889 में से उस दो को घटाएँ, जो 998 को एक हजार बनाने के लिए जोड़ना पड़ा। मिला 887। इसे मन में 222 के पहले बाईं ओर लिखें। यही, यानी 887 222, सही गुणनफल है।'

यूनान और मिस्र से भी पुराना
भारत का गणित-ज्ञान यूनान और मिस्र से भी पुराना बताया जाता है। शून्य और दशमलव तो भारत की देन हैं ही, कहते हैं कि यूनानी गणितज्ञ पाइथागोरस का प्रमेय भी भारत में पहले से ज्ञात था। लेकिन, यह ज्ञान समय की धूल के नीचे दबता गया। उसे झाड़-पोंछ कर फिर से निकाला पुरी के शंकराचार्य रहे स्वामी भारती कृष्णतीर्थजी महाराज ने 1911 से 1918 के बीच। वे एक विद्वान पुरुष थे। संस्कृत और दर्शनशास्त्र के अलावा गणित और इतिहास के भी ज्ञाता थे। सात विषयों में मास्टर्स (MA) की डिग्री से विभूषित थे। उन्होंने पुराने ग्रंथों और पांडुलिपियों का मंथन किया और निकाले वे सूत्र, जिन के आधार पर वैदिक विधि से मन ही मन हिसाब लगाये जा सकते हैं।

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विधि के विरोध के आगे विवश
लगता है कि विधि के विधान को भी गणित की वैदिक विधि के विस्तार से कुछ विरोध था। कहा जाता है कि भारती कृष्णतीर्थजी ने वैदिक गणित के 16 मूल सूत्रों की व्याख्या करने वाली 16 पुस्तकों की पांडुलिपियाँ लिखीं थीं, पर वे कहीं गुम हो गईं या नष्ट हो गईं। उन्होंने ये पांडुलिपियाँ अपने एक शिष्य को संभाल कर रखने के लिए दी थीं। उन के खोजे सूत्र अंकगणित ही नहीं, बीजगणित और भूमिति सहित गणित की हर शाखा से संबंधित थे।

अपने अंतिम दिनों में उन्होंने एक बार फिर यह भगीरथ प्रयास करना चाहा, लेकिन विधि के विधान ने एक बार फिर टाँग अड़ा दी। वे केवल एक ही सूत्र पर दुबारा लिख पाए। उन्होंने जो कुछ लिखा था और उनके शिष्यों ने उनसे जो सीखा- सुना था, उसी के संकलन के आधार पर 1965 में वैदिक गणित नाम से एक पुस्तक प्रकाशित होने वाली थी। प्रकाशन से पहले ही बीमारी के कारण उनका जीवनकाल (1884 से 1960) पूरा हो चुका था।


ND
पश्चिम की बढ़ती दिलचस्पी
1960 वाले दशक के अंतिम दिनों में वैदिक गणित की एक प्रति जब लंदनपहुँची, तो इंग्लैंड के जाने-माने गणितज्ञ भी चकित रह गये। उन्होंने उस पर टिप्पणियाँ लिखीं और व्याख्यान दिए। जिन्हें 1981 में पुस्तकाकार प्रकाशित किया गया। यहीं से शुरू होता है पश्चिमी देशों में वैदिक गणित का मान-सम्मान और प्रचार-प्रसार।

कुछ साल पहले लंदन के सेंट जेम्स स्कूल ने अपने यहाँ वैदिक गणित की पढ़ाई शुरू की। आज उसे भारत से अधिक इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के सरकारी और निजी स्कूलों में पढ़ाया जाता है। शिक्षक गणित को रोचक और सरल बनाने के लिए उसका सहारा लेते हैं। वैदिक विधि से बड़ी संख्याओं का जोड़-घटाना और गुणा-भाग ही नहीं, वर्ग और वर्गमूल, घन और घनमूल निकालना भी संभव है।

नासा की जिज्ञासा
ऑस्ट्रेलिया के कॉलिन निकोलस साद वैदिक गणित के भक्त हैं। उन्होंने अपना उपनाम 'जैन' रख लिया है और ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स प्रांत में बच्चों को वैदिक गणित सिखाते हैं। उनका दावा हैः 'अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा गोपनीय तरीके से वैदिक गणित का कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले रोबोट बनाने में उपयोग कर रहा है। नासा वाले समझना चाहते हैं कि रोबोट में आदमी के दिमाग की नकल कैसे की जा सकती है ताकि रोबोट ही दिमाग की तरह हिसाब भी लगा सके-- उदाहरण के लिए कि 96 गुणा 95 कितना हुआ....9120।'

कॉलिन निकोलस साद ने वैदिक गणित पर किताबें भी लिखी हैं। बताते हैं कि वैदिक गणित कम से कम ढाई से तीन हजार साल पुराना विज्ञान है। उस में मन ही मन हिसाब लगाने के जो16 सूत्र बताए गए हैं, वे इस विधि का उपयोग करने वाले की स्मरणशक्ति भी बढ़ाते हैं।

चमकदार प्राचीन विद्या
साद अपने बारे में कहते हैं, 'मेरा काम अंकों की इस चमकदार प्राचीन विद्या के प्रति बच्चों में प्रेम जगाना है। मेरा मानना है कि बच्चों को सचमुच वैदिक गणित सीखना चाहिए। भारतीय योगियों ने उसे हजारों साल पहले विकसित किया था। आप उनसे गणित का कोई भी प्रश्न पूछ सकते थे और वे मन की कल्पनाशक्ति से देख कर फट से जवाब दे सकते थे। उन्होंने तीन हजार साल पहले शून्य की अवधारणा प्रस्तुत की और दशमलव वाला बिंदु सुझाया। उनके बिना आज हमारे पास कंप्यूटर नहीं होता।'

साद उर्फ जैन ने मानो वैदिक गणित के प्रचार-प्रसार का व्रत ले रखा है,' मैं पिछले 25 सालों से लोगों को बता रहा हूँ कि आप अपने बच्चों के लिए सबसे अच्छा काम यही कर सकते हैं कि उन्हें वैदिक गणित सिखाएँ। इससे आत्मविश्वास, स्मरणशक्ति और कल्पनाशक्ति बढ़ती है। इस गणित के 16 मूल सूत्र जानने के बाद बच्चों के लिए हर ज्ञान की खिड़की खुल जाती है।'भारतीय गणन परंपरा : प्रामाणिक और चमत्कार
लेखक राम यादव

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति

क्या carrier ही सब कुछ है ?

क्या हमे अभी भी ऐसे देशों ( पश्चिमी देशों ) से सीखने की जरूरत है जहाँ की कन्याओं को अपनी पढाई पूरी करने के लिए अपने शरीर तक को बेचना पड़ता है ताकि नौकरी के लिए एक आर्हता प्राप्त हो जाये और वो भी अपना पेट पलने के लिए ।। अगर पश्चिम इतना ही अच्छा और लुभावना और तरक्की वाला है ऐसे मूल्य क्यूँ बने जहाँ उनके नवयुवतियों को अपनी पढाई पूरी करने के लिए जिस्मफरोशी तक करनी पड़ती है ।। ऐसा नहीं है अब हमारे यहाँ ऐसे उदहारण नहीं मिलते । दुर्भाग्य है कि lavish lifestyle के चक्कर में दिल्ली और कुछ दुसरे महानगरों में ऐसी बातें आम हो गयी है । क्या carrier ही सब कुछ है ?

"ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: ,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति: ।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: ,
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि ॥"

गंवई फ्रिज

भारत के कुंभार दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक
होते हैं। इन्होने उसी से प्रेरणा लेते हुए मिट्टी के
उत्पादों की शृंखला पेश की। आमतौर पर फ्रिज
में जो कम्प्रेसर होता है उसमें से जहरीली गैस
निकलती हैं जो पर्यावरण को तो नुकसान
पहुंचाती ही हैं साथ ही उनसे कई
बीमारियों का खतरा भी रहता है। इसी कारण
पिछले 20 वर्षों में फ्रिज बढ्ने के साथ साथ
'अर्थराइटिस' के रोगी बढ़ें हैं और लगभग
प्रत्येक घर में एक अर्थराइटिस
रोगी है।
उन्होंने जो मिट्टी का फ्रिज बनाया है
वो पूरी तरह से ईको फ्रेंडली है। ये बिजली के
बिना चलता है जिससे ये पर्यावरण को कोई
नुकसान नहीं पहुंचाता। मिट्टी से बना ये फ्रिज
पानी को ठंडा और फल-सब्जियों को पूरा दिन
ताजा रखता है। इसकी एक खासियत ये भी है
कि इसका तापमान बाहर के तापमान से 10
डिग्री सेल्सियस कम रहता है।
2002 में इन्होने मिट्टी का फ्रिज
बनाया जो बिना गैस और बिजली के चलता है।
अब इन्हें इनके विभिन्न कलात्मक उत्पादों के
लिए विदेश से ऑर्डर मिलते हैं और
लोगों को इनके प्राकृतिक रेफ्रिजरेटर का उपयोग
करना पसंद करते हैं।
क्या आप जानते है ऐलुमिनियम के पात्रो में कुछ
पकाकर खाना सबसे खतरनाक है और आधुनिक
विज्ञान इसको मानता हैं। यहाँ तक कि आयुर्वेद
में भी ऐलुमिनियम के पात्र वर्जित हैं। जिस पात्र
में खाना पकाया जाता है, उसके तत्व खाने के
साथ शरीर मे चले जाते है और
क्योकि ऐलुमिनियम भारी धातू हैं इसलिये शरीर
का ऐसक्रिटा सिस्टम इसको बाहर नहीं ...
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Address: R.K. Nagar Wankaner
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मेथी - एक अमृत

आयुर्वेद के अनुसार डाइबिटीज व मधुमेह में मेथी का सेवन बहुत लाभदायक माना गया है। मेथी को भारतभर में आमतौर पर सेवन किया जाता है। यदि मेथी की सब्जी लोहे की कढ़ाही में बनायी गई तो इसमें लौह तत्व ज्यादा बढ़ जाती है। एनीमिया यानी खून की कमी के रोगियों को यह बहुत फायदेमंद है।

किसी भी व्यक्ति की कैल्सियम की दिनभर की जरूरत 400 मि. ग्राम कैल्सियम मिल जाता है। विटामिन ए और सी भी मेथी में खूब रहता है। ये दोनों विटामिन मेथी दानों की तुलना में मेथी की सब्जी में ज्यादा होते है। साधारण मेथी चम्पा व कसूरी मेथी। मेथी व मेथीदाना डाइबिटीज रोगियों के लिए बहुत अधिक लाभदायक है।

यदि दिनभर में 25 से 100 ग्राम तक मेथी दाने किसी भी रूप में सेवन कर लिया जाए तो रक्त शुगर की मात्रा के साथ बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रोल भी धीरे-धीरे कम होने लगता है। रोगी राहत महसूस करता रहता है।

पीसे हुए मेथी दाने 50 से 60 ग्राम मात्रा को एक ग्लास पानी में भिगो दें। 12 घंटे बाद छानकर पीएं। इस तरह से सुबह-शाम रोज दो बार पीते रहने से मधुमेह में आराम मिलता है। इसके अलावा मेथी के पत्तों की सब्जी भी खाएं। मेथी बहुत ही कारगर औषधि है।

इसके साथ ही यह पाचन शक्ति और
भूख बढ़ाने में मदद करती है।

अन्य गुणों k बारे में जानिए।

बदहजमी/अपच : घरेलू उपचार में
मेथी दाना बहुत उपयोगी होता है। आधा चम्मच मेथी दाना को पानी के साथ निगलने से अपच की समस्या दूर होती है।

साइटिका व कमर का दर्द : आयुर्वेदिक चिकित्सकों के अनुसार मेथी के बीज आर्थराइटिस और साइटिका के दर्द से निजात दिलाने में मदद करते हैं। इसके लिए 1 ग्राम मेथी दाना पाउडर और सोंठ
पाउडर को थोड़े से गर्म पानी के साथ दिन में दो-तीन बार लेने से लाभ होता है।

डायबिटीज : इस रोग से दूर रहने के लिए प्रतिदिन 1 टी स्पून मेथी दाना पाउडर पानी के साथ फांकें। इसके अलावा एक टी स्पून मेथी दाना को एक कप पानी में भिगो कर रात भर के लिए छोड़ दें। सुबह इसका पानी पिएं। इससे सीरम लिपिड लेवल कम होता और वजन भी संतुलित रहता है।

उच्च रक्तचाप : 5-5 ग्राम मेथी और सोया के दाने पीसकर सुबह-शाम पीने से ब्लड प्रेशर संतुलित रहता है।

न्यूट्रीशनल वैल्यू चार्ट
प्रति 100 ग्राम मेथी दाना में
आर्द्र ता - 13.70 ग्राम
प्रोटीन - 26.20 ग्राम
वसा - 5.80 ग्राम
मिनरल्स - 3.0 ग्राम
फाइबर - 7.20
ग्राम कार्बोहाइड्रेट - 44.1 ग्राम
एनर्जी - 333.0 किलो कैलरी
कैल्शियम - 160.0 मिग्रा.
फास्फोरस - 370.0 मिग्रा.
आयरन - 6.50 मिग्रा.

मेथी घर-घर में सदियों से अपना स्थान बनाए हुए है। खास तौर पर इसका प्रयोग मसालों में किया जाता है। इसके बीजों में
फॉस्फेट, लेसिथिन और न्यूक्लिओ-अलब्यूमिन होने से येकॉड लिवर ऑयल जैसे पोषक और बल प्रदान करने वाले होते हैं। इसमें फोलिक एसिड, मैग्नीशियम,
सोडियम, जिंक, कॉपर, नियासिन, थियामिन, कैरोटीन आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं।

मेथी का प्रयोग स्वाद बढ़ाने के लिए ही नहीं बल्कि सौंदर्य बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। मेथी में कैंसर रोधक तत्व भी पाए जाते हैं। इसका उपयोग डायबिटीज, हाई
ब्लड प्रेशर और पेट संबंधी समस्या में फायदेमंद होता है।

स्वदेशी बनो स्वावलंबी बनो,,,,

Tuesday, May 14, 2013

हिंदी

हिंदी इतनी समृद्ध भाषा है की इसमें हमारे रिश्ते अच्छी तरह से बताये गए हैं जबकि अंग्रेजी में चाचा ताऊ मामा फूफा सबको अंकल बोलतें हैं  और बड़ी बहिन ,दीदी , भाभी ननद जैसे सम्बन्ध को तो बताया ही नहीं जा सकता । ऐसी भाषा जो हमारे संस्कार और सम्बन्ध को भी नहीं बता सकते उसे हम क्यूँ अपनाते हैं । अंग्रेजी भाषा हमारे संबंधों को सूक्ष्म स्तर पर परिभाषित करने की औकात नहीं रखती है । जिस भाषा में मूल शब्द सिर्फ १२००० हैं जो की गुजराती भाषा के मूल शब्दों (४००००) से भी कम है  उसको हमारे पढने का माध्यम कैसे बना सकते हैं । हमे अंग्रेजी और अंग्रेजों के तलवे चाटने बंद करने होंगे । सच कहों तोह मेरा मन आईटी से उब गया हैं । पता नहीं क्यूँ लेकिन आत्मबोध की स्थिति में हूँ .....

Monday, April 29, 2013

Kya bhoolon Kya yaad rakhoon

Kya bhoolon kya yaad karoon
Godhuli bela
mandir ka prangan
prabhat ka aagman
masjid ki azaan
Kya bhoolon kya yaad karoon
Holi ke raang
gulaal abeer
Id ka chand
sewaiyan aur kheer
Kya bhoolon kya yaad karon


kya bhoolon kya yaad karoon
pratishod ki dhadhakti jwala
uttejana aur krodh
jiski aag mein maine
khud ko he jala daala
kya bhoolon kya yaad karoon
maadakta se utapanna
hui aseem dussahas
bhal manas ke andar
shaitaan ka attahas
kya bhoolon kya yaad karoon


kya bhoolon kya yaad karoon
anukool jo durdin mein
ban jata pratikool yahan
kaanton se sewit hai
manavta ka phool yahan
kya bhoolon kya yaad karon
Is upvan ki pagdandi pe
bach ke jaana
menka ke chitwan pe
nahi lalchana
kya bhoolon kya yaad karoon


kya bhoolon kya yaad karoon
jagti ki madakta
ya akshay tatva
sunderta ka aakarshan
jisme nahi amaratva
Kya bhoolon kya yaad karoon
yuvtiyon ke aalingan mein
paya santosh nahi
is kshannik sukh mein
mila koi paritosh nahi
Kya bhoolon kya ....


kya bhoolon kya yaad karoon
bachpan ke gilli aur dande
kabaddi ke daon peench
cricket khelne ke liye
apnaye hathkande
kya bhoolon kya yaad karoon
wo hockey ka stick
wo badminton ka net
football ka geela maidan
baarish ko chadh gayi bhent
kya bhool....


kya bhoolon kya yaad karoon
mushkilon ka wo daur
jisse hokar pada gujarana
aag mein tapkar
aur bhi nikharna
kya bhoolon kya......
vifaltaon ka na darr
safalta ka toota gurur
jaati kahan bachkar
haath aati jaroor
kya bhool kya yaad karoon


kya bhoolon kya yaad karoon
kyun nahi sabhalna
antheen yatra mein bhatakna
yatra ke sukhad sapne
padaaw nitant apne
Kya bhoolon kya yaad karoon
sapno ka yatharth
asmanjas ya dwand
iqchha ka balwati ho
jo bhi karwana
wahi yatharth ban jana
kya bhoolon............


kya bhoolon kya yaad karoon
Din bhar ki sair
ya alsayi subah suhani
jo hai sunaati
beete hue raat ki kahani
...Kya bhoolon kya yad karoon
mausam ki angrai
chhui mui si sharmai
aayi the aagosh mein
hua tha madhosh main
Kya bhoolon kya yaad karoon


kya bhoolon kya yaad karoon
Dish desh mein ganga behti hai
ya siskiyaan leti
kachron se aachhadit
dilli mein yamuna rehti hai
kya bhoolon kya yaad karoon
khara himalaya bata raha hai
daro na aandhi paani se
ya pradushit karte hum
prakriti ko aapni naadani se
Kya bhoolon kya yaad karoon


 

Dilli

Vaibhav ki deewani dilli.
Angrezi ki raani dilli
yamuna ka behta paani dilli
Chat papdi purani dilli
Rastrakul khelon ki dilli
pragati maidan ke melo ki dilli
...
Ye dilli hai mere yaar
bas isq mohaabat pyaar

मातृभूमि

अमेरिका प्रवास के दौरान लिखी एक रचना

मातृभूमि

ए  मातृभूमि  मेरी  रह  ताकना
सूरज   पर  स्वर  होक  आऊँगा
नए  बयार  नया  सवेरा  लाऊँगा
तेरी  उर्वर  शक्ति  को  शत शत  नमन
माँ  गंगा  है  तुझे  सींचती
हरित  क्रांति  मैं  लूंगा
ए  मातृभूमि  मेरी  रह  तकना
सूरज  पर   सवार   होके  आऊँगा
मुझे  आँचल  में  समेट  लेना
स्नेह  का  आलिंगन  मुझे  देना
... तेरा  आशीष  पाकर  मैं
विषम   परिस्थितियों  से  लड़  जाऊँगा
ए  मातृभूमि  .............

रतीश 

भारत भूमि

अरे ओ  भारत  भूमि  विशाल
मस्तक  पे  तेरे  हिमाला  है
हैं  चरण  धोती  तेरी
हिन्द  महासागर  विकराल

दक्कन  बढाती  है  तेरा  मान
दक्षिण  तेरा  दैदीप्यमान
बंग  भूमि  तेरा  अभिमान
उर  स्थित  विन्ध्य  शोभायमान

देव  भूमि  है  तेरा  श्रृंगार
उत्तर  प्रदेश  ,कलिंगा  और  बिहार
रण  कच्छ   सौराष्ट्र  मराठवाड़
राजस्थान  की  हो  जय  जय  कार

मेरा  कोटि  कोटि  नमन
करूँ मस्तक  से  स्पर्श  चरण  ।।

@रतीश 

सफ़र

एक  पल  था  जो  बीत  गया
जो  सपना  था  अब  अतीत  हुआ
अंतहीन भ्रमण  क्या   है
ये  प्रत्यक्ष   प्रतीत  हुआ
वो  नज़ारे  वो  मंजर
वो  सहारे  और  खंजर
कुछ   खट्टी  कुछ मीठी
लम्हे  यादें  और  सफ़र

@रतीश