Tuesday, May 14, 2013

हिंदी

हिंदी इतनी समृद्ध भाषा है की इसमें हमारे रिश्ते अच्छी तरह से बताये गए हैं जबकि अंग्रेजी में चाचा ताऊ मामा फूफा सबको अंकल बोलतें हैं  और बड़ी बहिन ,दीदी , भाभी ननद जैसे सम्बन्ध को तो बताया ही नहीं जा सकता । ऐसी भाषा जो हमारे संस्कार और सम्बन्ध को भी नहीं बता सकते उसे हम क्यूँ अपनाते हैं । अंग्रेजी भाषा हमारे संबंधों को सूक्ष्म स्तर पर परिभाषित करने की औकात नहीं रखती है । जिस भाषा में मूल शब्द सिर्फ १२००० हैं जो की गुजराती भाषा के मूल शब्दों (४००००) से भी कम है  उसको हमारे पढने का माध्यम कैसे बना सकते हैं । हमे अंग्रेजी और अंग्रेजों के तलवे चाटने बंद करने होंगे । सच कहों तोह मेरा मन आईटी से उब गया हैं । पता नहीं क्यूँ लेकिन आत्मबोध की स्थिति में हूँ .....