Friday, February 5, 2016

लघु कथा शिल्प सृजनशक्ति का भरपूर उपयोग करती है।  गागर में सागर भरना कहते है इसे ।
आईये अपनी सृजनात्मकता का भरपूर आनंद उठाएं , जुड़े , जोड़ें और अभिव्यक्त करें ।
रामावतार को बिटिया की शादी करनी थी । सोलवां चढ़ गया था नीलुआ को ,अचरज थी एकदम । बेनियाचक से रामेशवर माट्साब के घर का रिश्ता था ।  ४ बीघा जमीन ,ट्रैक्टर ,पेंसन ,पक्का मकान क्या नहीं था , बीए पास कम्पटीशन की तैयारी कर रहा था सुनील  । ५ लाख नगद का डिमांड हुआ था और बाकी सब तो थैये था लिस्ट में । अब तो खैनी की फसल उम्मीद टिकी थी कि बेटी विदा हो जाये तो देवघर जल चढ़ाएंगे बाबा को ।  फसल अच्छी हुई थी ।  खेत लहलहा रहे थे ,खैनी के पत्ते बेतरबिब बड़े हो रहे थे और उतना ही सीना चौड़ा हो रहा था रामावतार का । बस कुछ ही दिनों में बिटिया के हाथ पीले होने वाले थे ।  टेंट  वाला ,हलवाई ,गाडी वाला , जनमासा सब का इन्तेजाम हो गया था । डेढ़ महीने बाद तिलक और उसके के एक हफ्ता बाद शा दी थी ।फसल भी कटने  वाली थी । कलकत्ता वाली पार्टी ने पांच हजार रुपये बयाना भी दे दिया था । पचीस हजार रुपये कट्ठा के हिसाब से तय हुआ था दाम। पूरे ३० कट्ठा में थी फसल । मार्च का आखिरी हफ्ता था । बेमौसम बादल दिख  रहे थे । दोपहर में थोड़ी बूंदा बांदी हो गयी । शक्ति का  संतुलन था ये । रामवतार जैसे इंसान हो सतर्क करने के लिए काफी था। दो हफ्ता तक कोई बादल नहीं दिखा । रामवतार शहर गया था  शादी के  कपड़े ,सामान खरीदने । घर पर हिदायत दे दी थे खेत पर हमेशा पहरा रहे । अप्रैल महीना शुरू ही हुआ था । गर्मी महीना पाँव पसार रहा था । पर जिस बदरी का  अंदेशा नहीं के बराबर था वो अचानक धूल भरी आंधी के साथ साक्षात्  यम बनके पहुंचा । रामवतार आधी खरीदारी छोड़ के मोटरसाइकिल निकाल के घर की तरफ भागा । धूल भरी आंधी उसका रास्ता रोक रहे थे । ईश्वर ने बेटी जो दिया था परीक्षा तो लेगा ही । जैसे जैसे बादल  घने हो रहे थे\वैसे रामवतार की  मोटरसाइकिल की रफ़्तार बढ़ रही थी और उसकी धड़कन की  भी । न जाने क्या लिखा है नीलुआ के किस्मत में ? हे इंद्रदेव आज न बरसिउ ।

 बरखा शुरू हो गयी और  ओले भी । रे हे रे पन्नी निकाल , जल्दी ला ।  फैलो एकरा । रे हे रे  सब कोना से  पकड़ ।  एगो  और पन्नी निकाल ।  बड़का वाला ।  तीस कट्टा  में  न है  रे । रे हे रे  जल्दी कर । 

किसी तरह खेत को ढक  पाये ।  तब तक ओलों ने अपना काम कर दिया था । ओलों ने पत्तों में नहीं बल्कि रामवतार के हृदय में छेद  कर दिया था ।  आधी कीमत भी नहीं रह गयी फसल की । बड़ी मुश्किल से तो पार्टी फसल लेने को भी तैयार हुई ।  नीलुआ  विदा तो हो गयी लेकिन बाप बेचारा साहूकार के चक्रवृद्धि ब्याज में धंस गया । अब तो मिनिया भी बारह की हो गयी है , सरवन  का पढाई ऊपर से चक्रवृद्धि ब्याज ।

बिटिया

चंचल को दो महीने हो गए बिछावन पकडे हुए। इलाज़ के नाम पे ढेला न हुआ था । दो साल पहले जब कॉलेज से अव्वल नम्बरों से पास हुई थी तो बाउजी ने चुपके से चुपके से उसे नया स्मार्ट फ़ोन लाके  दिया था जिसकी चार्जिंग हमेशा पड़ोस के घर में होती थी इस डर से की अगर उसकी  सौतेली माँ ने देख लिया तोह ।  एक दिन उसी  फ़ोन पे  इंटरव्यू कॉल भी आया था । महिंद्रा के शोरूम  में सेल्स एग्जीक्यूटिव की नौकरी का ।  पंद्रह हजार तनख्वाह और एक नया दुपहिया  ऑफिस आने जाने के लिए । चंचल की तपस्या काम आ गयी । ऑफर लेटर ले के घर में पहुंची तो खुश होने के बजाय घबरा गयी । सौतेली माँ कैसी  प्रतिक्रिया देगी पता नहीं  ! फ़ोन लगाया उसने बुआ को । बुआ ने बोला पहली तनख्वाह मिलते हे अलग कमरा ले ले और किसी की परवाह न करे । पापा घर पे नहीं थे ,मिकी खेलने गया था । ललिता चंचल की चाल भांप गयी ,उसे लग गया की चंचल कुछ अच्छा खबर लायी है । दिमाग की बत्ती जल गयी की आगे क्या करना है ? चंचल को ललिता  का व्यवहार बदला बदला सा लगा ।  १ महीने में चंचल उसके झांसे में आ गयी । रोज सुभह नास्ता बनाके ऑफिस जाती और शाम को आके खाने में हाँथ बटाती । पहली तनख्वाह से  भोले बाबा को लड्डू चढ़ा के सारा पैसा महतारी को दे दी , आखिर यही तोह उसके पापा भी करते थे । जब तक तबियत खराब न हुई तब तक तोह सब ठीक था । पापा की नयी बाइक आ गयी , मिकिआ का म्यूजिक सिस्टम ,मैया का नया सोने का हार । जिस दिन तबियत बिगड़ी बेचारी चंचल असहाय हो गयी । दो दिन की छुट्टी ली थी और आज एक महीना हो गया ज्वर गया नहीं । आज तक डॉक्टर को नहीं दिखाया । कोई कहे तोह ललिता देवी कह देती ,"अरे दवाई घोंटती ही नहीं है ज्वर कहाँ से उतरेगा , कहाँ कहाँ से   इलाज नहीं कराया लेकिन इसको न जाने कौन सा मरज  पकड़ लिया है "। सबको पता था अब चंचल नहीं बचेगी । नौकरी भी कबतक रहती, प्राइवेट  थी  ।  चंचल बेसुध बेचारी ,न जाने किसका राह जोह रही थी । बुआ को पता लगा तो आई लेकिन देर हो चूका था । डॉक्टर ने भी बचने की कोई उम्मीद  छोर दी और बोले बहुत देर कर दी । तीसरे महीने का पहला दिन , तेज धुप , धुल  और उतना  तेज ज्वर । चंचल के  मुहं से बुआ बुआ निकला और  इहलीला ख़त्म हो गयी ।  धरम बाबू की बिटिया विदा ने सदा के लिए विदा ले लिया  ।  @रतीश