Tuesday, December 13, 2016

बुरा हाल

पूँजी भी अपनी है ,बैंककर्मी भी अपने हैं , सरकार भी अपनी है और  नेता भी अपने हैं | भ्रष्टाचार भी अपना है , घूसखोरी भी अपनी है ,जमाखोरी भी अपनी है और  मिलावटखोरी भी अपनी है  । दुराचार भी अपना है , अनाचार भी अपना है , कदाचार भी अपना है  और व्यभिचार भी अपना है ।  फिर क्यों कहते हैं यात्रा  अंतहीन है , इसमें प्रजा भटकते हुए त्रस्त है ,  । अगर कुछ अपना नहीं है तो ये व्यवस्था , शिक्षा ,गुण और संस्कार । ब्रितानी सँस्कारो में पले नेहरू ने देश को रखा गिरवी और बाकी कसर इंदिरा,राजीव और सोनिया ने पूरी करदी । 

Wednesday, October 19, 2016

अनुराग कश्यप ने भारत के प्रधान सेवक पर प्रश्न उठाये हैं! बिलकुल आपका हक़ है ये की अपने प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा कीजिये । लेकिन कोइ सॉलिड मुद्दा तो होना चाहिए । मैं पूछता हूँ की पाकिस्तानी को काम पे नहीं लिए होते तो तुम्हे क्रिएटिव लिबर्टी नहीं मिलती ? तुम्हारे जैसे लोगों के लिए फिल्म बनाना जूनून है लेकिन इसका ये मतलब थोड़े ही है की राष्ट्रहित को ताक  पे रख दो. उनका भी ख्याल करो जिनके लिए राष्ट्र की रक्षा ही उसका जूनून है. सैनिक राष्ट्र की सेवा करते हैं जब हालात ऐसे हों  तो प्रधान सेवक से प्रश्न करने से पहले ये तो सोच लो की तुम्हारे वक्तव्य से उनका मनोबल भी तो गिरता है. सबके मनोबल की जिम्मेदारी प्रधान सेवक की है लेकिन उसके मनोबल को भी तो बनाये रखना है !  मुझे लगता है गलती तुम्हारी नहीं है , तुम्हारा चुना हुआ प्रोफेशन ही ऐसा है जहाँ आधे से ज्यादा लोग अधकपाड़ी होते हैं. फ़िल्मी लोग ऐसै ही होते हैं , रील की दुनिया ही  उन्हें अपनी लगती है । तुम्हारे लिए फिल्मे बनाना सबकुछ नहीं होना चाहिए । माना  कि फिल्मों के लिए जुनूनी हो लेकिन थोड़ा जूनून देश के लिए भी रखो फिर देखो ! 

Wednesday, August 10, 2016

चलिए मान लेते हैं आपकी बात काटजू साब की आप निहायत साइंटिफिक बात करते हैं और बहुत ही तार्किक इंसान हैं. आप भूतपुर्व जज भी रह चुके हैं । आप कहते हैं हिन्दू धर्म में बहुत बुराइयां हैं , जात पांत का भेदभाव है , कुरीतियां हैं , अन्धविश्वास है , इत्यादि इत्यादि । बुजुर्ग हैं आप लेकिन ऐसे तो बिलकुल नहीं जिनको  फॉलो किया जाए । जज रहे हैं तो तर्क प्रधान होंगे ही । अमेरिका वाले , जापान वाले ,चीन वाले , यूरोपियन्स सब गाय मार कर खाते हैं , सब बेवकूफ तो नहीं  और हम नहीं खाते हैं इसलिए श्रेष्ठ तो नहीं ! बिलकुल सही तर्क है । लेकिन सबसे पहला तर्क की किसी को मार के खाना ठीक है चाहे वो एक निरीह प्राणी ही क्यों न हो ? दूसरा जिसको मार दिया , और अब जो मार हुआ है उसे पका के खा जाना क्या सइंटिफिकल्ली ठीक है ? अगर दुनिया के ६ अरब लोग सब गाय मार के खाने लगे तोह इतने गाय कहाँ से पैदा करोगे काटजू साब की सबकी इक्छा पूर्ती करोगे । एक गाय मारने के बाद उसके मांस को खाने लायक बनाने के लिए १००० लीटर से ऊपर पानी लगता है और गाय का बेकार हिस्सा जो की खाने लायक नहीं है फ़ेंक दिया जाता है । इतना पानी क्या आपकी रचित कोई आइलैंड से  लाएंगे और कचरा किसी तीसरी  दुनिया के देशों में फेंकेंगे ? हज़ारों गाय के काटने से जितना प्रदुषण होता है उसको आपकी शरीर  से निकली विशेष गैस तो शुद्ध नहीं करेगी न ।  आप खाएं बेशक खाएं , हिन्दू मुर्ख है अगर नहीं खाता है तो , मुर्ख ही अच्छा है । आपकी तरह पश्चिम परस्त नहीं बनना है । हिन्दू न खा के ज़िंदा भी है और दुनिया की सबसे उम्दा कौम भी है । शायद हम शान्ति परस्त और शान्ति पसंद कौम हैं तो इसका सबसे बड़ा कारण है हम जीवों के प्रति दयालु हैं! हम जीवों को जीने का उतना ही अधिकार देना पसंद करते हैं जितना हमे है । मुझे ताजुब्ब होता है की आप सुप्रीम कोर्ट के जज थे ! हो सकता है मैं भ्रम में हूँ की सुप्रीम कोर्ट के जज के पास अच्छी तर्क शक्ति  और स्थिर दिमाग होता है । भारत के संविधान में भी आपका विश्वास था /है या नहीं ।   काटजू साब अगर आपने हिन्दू धर्म को ठीक से समझा होता तो शायद ऐसी बात नहीं करते । 

Tuesday, August 9, 2016

अगस्त २०१६ का पहला हफ्ता ब्रेअस्ट्फीडिंग वीक ( स्तनपान सप्ताह ) के रूप में मनाया गया !! भारत में भी अपने स्वास्थ्य मंत्री कुछ WHO के अँगरेज़ अधिकारी और चलचित्र में अदाकारा माधुरी दिक्षित नेने के साथ स्तनपान सप्ताह मना रहे थे. चलिए कुछ तो सही , प्रयास तो है की भारत की माँ की दूध की लाज रखने वाले नौनिहाल  आगे भी होंगे नहीं तो बहुराष्ट्रीय संस्थाएं ने तो दूध का पाउडर बेच के नौनिहालों के ऊपर माँ के दूध का कर्ज चढ़ने नहीं दे रहे थे । बल्कि अपना व्यापार बढ़ा के भारतियों के मन में नयी सांस्कृतिक चेतना जग रहे थे की बहिन तुम दूध की चिंता मत करना उसका इंतेजाम है , हमारा पाउडर बिलकुल आपके लाल के लिए शुद्ध और माफिक रहेगा  ।  गौ के दूध में ऑक्सीटोसिन नामक अमृत मिला होता है आजकल  इसलिए अब वो ज्यादा पोषक हो गया है ,जो कि आपके बच्चे के लिए अपच हो सकता है !!! माताओं बहनो अपने बच्चे को दूध पिलाने की झंझट से बचिए और हम आपको ऐसी लाइफ जीने का अवसर देना चाहते हैं जिसमे आपको हर सार्वजनिक जगह पे अपना स्तन स्तनपान  के लिए उघाड़ना न पड़े  और लज्जित न होना पड़े ! बिलकुल वैसा ही जैसा पश्चिम के देशों में होता है ! वहां नारी को अपनी सुंदरता और सुविधा की चिंता होती है , बच्चे को तो दूध पिलाने के लिए ढेरों ब्रांड्स के न्यूट्रिशियस दूध हैं न , वो सारे के सारे वहीँ के फ़ूड एंड ड्रग डिपार्टमेंट से सर्टिफाइड भी होतीं हैं ।माफ़ कीजिये जरा कटु शब्दों का प्रयोग कर रहा हूँ. लेकिन भारत के मध्यमवर्ग को अपनी ही सभ्यता पर शर्म आती है और ये शर्म करना हमें हमारे ब्रिटिश भाग्य विधाताओं ने सिखाया है !
                                                       अब ऐसे बहुराष्ट्रीय संस्थाओं को भारत में पैर पसारने से रोकने की बात हो रही है ! अब माताओं और बहनो को जागरूक बने रहने का प्रयास हो रहा है ! इसमें ब हुत खर्च भी होगा ! प्रचार करना होगा , शिक्षित करना होगा , उन सभी गुणों से परे  जो हमारी देश की बहुत सारी नयी माएं इन्टरनेट के जरिये जुटाती हैं !! ये स्तनपान सप्ताह उन्ही लोगों को सूट भी करता है जो भारतीय सभ्यता से दूर हो चुके हैं।  आज भी आप गांव में जाये तो आपको अभी भी बच्चों की ऑन डिमांड दूधू  सेवा पैदाइश के ३ साल तक बच्चों अपनी माता से स्नेह और लाड के साथ  मिलती है !  WHO  और पश्चिम  देशों की सरकारें कितना प्रयास करती हैं की पश्चिमी माताओं को यह सिखाया जाये की स्तनपान उनके और बच्चे दोनों के लिए उत्तम है ! मगर उनको कहाँ समझ में आती है , उन्हें आप बच्चों को लेके बड़े आराम से सुट्टा फूंकते देख सकते हैं. क्या उन्हें ये समझ नहीं आती है की ये सिगरेट का ये फैशन और वो भी बच्चों के सामने कितना घातक है ! शायद ये भी कोई संस्कार ही होगा जिसके तहत माँ अपने बच्चे को सुट्टा से इम्यून बना रही होंगी ! जो भी हो एक बहस तो है ही की पहले समाधान की नक़ल करो फिर समस्या अपने आप खड़ी  होती जाएगी !  डब्बाबंद दूध एक समाधान था लेकिन विशेष परिस्थितियों में , मगर धीरे धीरे वही समाधान एक समस्या बनकर खड़ी हैं ! 

Friday, February 5, 2016

लघु कथा शिल्प सृजनशक्ति का भरपूर उपयोग करती है।  गागर में सागर भरना कहते है इसे ।
आईये अपनी सृजनात्मकता का भरपूर आनंद उठाएं , जुड़े , जोड़ें और अभिव्यक्त करें ।
रामावतार को बिटिया की शादी करनी थी । सोलवां चढ़ गया था नीलुआ को ,अचरज थी एकदम । बेनियाचक से रामेशवर माट्साब के घर का रिश्ता था ।  ४ बीघा जमीन ,ट्रैक्टर ,पेंसन ,पक्का मकान क्या नहीं था , बीए पास कम्पटीशन की तैयारी कर रहा था सुनील  । ५ लाख नगद का डिमांड हुआ था और बाकी सब तो थैये था लिस्ट में । अब तो खैनी की फसल उम्मीद टिकी थी कि बेटी विदा हो जाये तो देवघर जल चढ़ाएंगे बाबा को ।  फसल अच्छी हुई थी ।  खेत लहलहा रहे थे ,खैनी के पत्ते बेतरबिब बड़े हो रहे थे और उतना ही सीना चौड़ा हो रहा था रामावतार का । बस कुछ ही दिनों में बिटिया के हाथ पीले होने वाले थे ।  टेंट  वाला ,हलवाई ,गाडी वाला , जनमासा सब का इन्तेजाम हो गया था । डेढ़ महीने बाद तिलक और उसके के एक हफ्ता बाद शा दी थी ।फसल भी कटने  वाली थी । कलकत्ता वाली पार्टी ने पांच हजार रुपये बयाना भी दे दिया था । पचीस हजार रुपये कट्ठा के हिसाब से तय हुआ था दाम। पूरे ३० कट्ठा में थी फसल । मार्च का आखिरी हफ्ता था । बेमौसम बादल दिख  रहे थे । दोपहर में थोड़ी बूंदा बांदी हो गयी । शक्ति का  संतुलन था ये । रामवतार जैसे इंसान हो सतर्क करने के लिए काफी था। दो हफ्ता तक कोई बादल नहीं दिखा । रामवतार शहर गया था  शादी के  कपड़े ,सामान खरीदने । घर पर हिदायत दे दी थे खेत पर हमेशा पहरा रहे । अप्रैल महीना शुरू ही हुआ था । गर्मी महीना पाँव पसार रहा था । पर जिस बदरी का  अंदेशा नहीं के बराबर था वो अचानक धूल भरी आंधी के साथ साक्षात्  यम बनके पहुंचा । रामवतार आधी खरीदारी छोड़ के मोटरसाइकिल निकाल के घर की तरफ भागा । धूल भरी आंधी उसका रास्ता रोक रहे थे । ईश्वर ने बेटी जो दिया था परीक्षा तो लेगा ही । जैसे जैसे बादल  घने हो रहे थे\वैसे रामवतार की  मोटरसाइकिल की रफ़्तार बढ़ रही थी और उसकी धड़कन की  भी । न जाने क्या लिखा है नीलुआ के किस्मत में ? हे इंद्रदेव आज न बरसिउ ।

 बरखा शुरू हो गयी और  ओले भी । रे हे रे पन्नी निकाल , जल्दी ला ।  फैलो एकरा । रे हे रे  सब कोना से  पकड़ ।  एगो  और पन्नी निकाल ।  बड़का वाला ।  तीस कट्टा  में  न है  रे । रे हे रे  जल्दी कर । 

किसी तरह खेत को ढक  पाये ।  तब तक ओलों ने अपना काम कर दिया था । ओलों ने पत्तों में नहीं बल्कि रामवतार के हृदय में छेद  कर दिया था ।  आधी कीमत भी नहीं रह गयी फसल की । बड़ी मुश्किल से तो पार्टी फसल लेने को भी तैयार हुई ।  नीलुआ  विदा तो हो गयी लेकिन बाप बेचारा साहूकार के चक्रवृद्धि ब्याज में धंस गया । अब तो मिनिया भी बारह की हो गयी है , सरवन  का पढाई ऊपर से चक्रवृद्धि ब्याज ।

बिटिया

चंचल को दो महीने हो गए बिछावन पकडे हुए। इलाज़ के नाम पे ढेला न हुआ था । दो साल पहले जब कॉलेज से अव्वल नम्बरों से पास हुई थी तो बाउजी ने चुपके से चुपके से उसे नया स्मार्ट फ़ोन लाके  दिया था जिसकी चार्जिंग हमेशा पड़ोस के घर में होती थी इस डर से की अगर उसकी  सौतेली माँ ने देख लिया तोह ।  एक दिन उसी  फ़ोन पे  इंटरव्यू कॉल भी आया था । महिंद्रा के शोरूम  में सेल्स एग्जीक्यूटिव की नौकरी का ।  पंद्रह हजार तनख्वाह और एक नया दुपहिया  ऑफिस आने जाने के लिए । चंचल की तपस्या काम आ गयी । ऑफर लेटर ले के घर में पहुंची तो खुश होने के बजाय घबरा गयी । सौतेली माँ कैसी  प्रतिक्रिया देगी पता नहीं  ! फ़ोन लगाया उसने बुआ को । बुआ ने बोला पहली तनख्वाह मिलते हे अलग कमरा ले ले और किसी की परवाह न करे । पापा घर पे नहीं थे ,मिकी खेलने गया था । ललिता चंचल की चाल भांप गयी ,उसे लग गया की चंचल कुछ अच्छा खबर लायी है । दिमाग की बत्ती जल गयी की आगे क्या करना है ? चंचल को ललिता  का व्यवहार बदला बदला सा लगा ।  १ महीने में चंचल उसके झांसे में आ गयी । रोज सुभह नास्ता बनाके ऑफिस जाती और शाम को आके खाने में हाँथ बटाती । पहली तनख्वाह से  भोले बाबा को लड्डू चढ़ा के सारा पैसा महतारी को दे दी , आखिर यही तोह उसके पापा भी करते थे । जब तक तबियत खराब न हुई तब तक तोह सब ठीक था । पापा की नयी बाइक आ गयी , मिकिआ का म्यूजिक सिस्टम ,मैया का नया सोने का हार । जिस दिन तबियत बिगड़ी बेचारी चंचल असहाय हो गयी । दो दिन की छुट्टी ली थी और आज एक महीना हो गया ज्वर गया नहीं । आज तक डॉक्टर को नहीं दिखाया । कोई कहे तोह ललिता देवी कह देती ,"अरे दवाई घोंटती ही नहीं है ज्वर कहाँ से उतरेगा , कहाँ कहाँ से   इलाज नहीं कराया लेकिन इसको न जाने कौन सा मरज  पकड़ लिया है "। सबको पता था अब चंचल नहीं बचेगी । नौकरी भी कबतक रहती, प्राइवेट  थी  ।  चंचल बेसुध बेचारी ,न जाने किसका राह जोह रही थी । बुआ को पता लगा तो आई लेकिन देर हो चूका था । डॉक्टर ने भी बचने की कोई उम्मीद  छोर दी और बोले बहुत देर कर दी । तीसरे महीने का पहला दिन , तेज धुप , धुल  और उतना  तेज ज्वर । चंचल के  मुहं से बुआ बुआ निकला और  इहलीला ख़त्म हो गयी ।  धरम बाबू की बिटिया विदा ने सदा के लिए विदा ले लिया  ।  @रतीश