Sunday, February 11, 2018

जब विश्वास टूट जाता है 
लहरें अधीर हो जाती हैं
किनारों को तोडना चाहती हैं , l
घात ये विश्वास का जिसपे
तिकी है नीव अट्टालिका की ,     
कब तक इसे बचाऊँगा   
और विश्वासपात्र रह पाऊँगा.
 मैं स्वान नहीं प्रिये मनुज हूँ
थोड़ी करू मनमानी,
तुम नहीं समझी भलमानस को ,
नहीं इसमें तेरी नादानी
अब ऊब चूका हूँ उन ध्वनि तरंगों से
जिसके सुनने की क्षमता नहीं,
कुछ भी कर लो मैं अब
तुम में मन रमता नहीं,
जो नहीं समझ सकी दर्जन सालों में
अब क्या समझाऊंगा वेदना ,
तुम सुखी रहो बच्चों की बनो प्रेरणा .
तय कर लो अपना नियत स्थान
मेरी राह अब न ताकना,
मैं निर्झर वन का प्राणी
अब निर्वासित मुझको रहना.

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